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धान की फसल

फसलों में बीजों से होने वाले रोग व उनसे बचाव

फसलों में बीजों से होने वाले रोग व उनसे बचाव

कई रोग बीज जनित होते हैं। यानी कि बीज के साथ ही किसी रोग संक्रमण के कारक मौजूद होते हैं। जैसे ही उन्हें विकास करने के लिए अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थिति मिलती है रोग का प्रसार तेज हो जाता है। इन रोगों की जानकारी होना किसानों के लिए बेहद जरूरी है। यदि वह इन रोगों के बारे में जान लेंगे तो फसलों में होने वाले व्यापक नुकसान से बचा जा सकता है।

बीजों से होने वाले रोग व उनसे बचाव

धान की फसल

धान की फसल में 1121 एवं 1509 किस्म के धान में आने वाला बकानी रोग इसका जीता जागता उदाहरण है। धान में बकानी एवं पदगलन रोग भी बीज जनित होता है। बकानी रोग में चंद पौधे सामान्य से ज्यादा लम्बे हो जाते हैं और धीरे करके जल जाते हैं। यह रोग फसल में बहुत तेजी से फैलता है। इस रोग से बचाव के लिए प्रारंभ में ही संक्रमित पौधों को उखाड देना चाहिए। उखाड़ते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि गीली मिट्टी खेत में ज्यादा न फैले अन्यथा मिट्टी के साथ छिटक कर रोगाणु ज्यादा जगह को प्रभावित कर सकते हैं।

उपचार

रोग रहित बीज का प्रयोग करें। दो प्रतिशत नमक का घोल बनाकर उनमें बीज को भिगोएं। थोथे बीज को फैंक देंं। बाकी बचे बीज को कई बार साफ पानी से साफ करें ताकि उसमें नमक का अंश न रहे। बृद्धि कारक नाइट्रोजन आदि उर्वरकों का रोग संक्रमण के दौरान बिल्कुल भी प्रयोग न करें। ssबीज को उपचारित करके ही बोएं। रोग संक्रमण के लक्षण प्रदर्शित होने पर प्रभावी फफूंदनाशी का छिड़काव भी करें साथ ही बालू में मिलाकर खेत में बुरकाव भी करें।

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गेहूं की फसल

गेहूं की फसल में लगने वाला कंडुआ रोग बीज जनित ही होता है। ज्यादातर किसान बीज को उपचारित करके नहीं बेचते। बीज विक्रेता कई राज्यों में बीज में दवा नहीं मिलाते। यह काम वह दुकानदारों को दोहरी परेशानियों से बचाने के लिए करते हैं। पहला दवा मिश्रित बीज से दुकान में बैठने के दौरान दिक्कत होती है। दूसरा बीज बचने पर उसे मण्डी आदि में बेच कर नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती। गेहूं का कंडुआ रोग बीज के भ्रूण में होता है। वह पौधे के विकास के साथ ही बढ़ता रहता है। जब फसल में बाली आने वाली होती है तब वह अपना प्रभाव दिखाता है। किसी भी संक्रमित बाली में लाखों रोगाणु होते हैं। जब हवा चलती है तो यह रोगाणु एक बाली से उडकर दूसरी बाली में जाते हैं। इससे अधिकांश फसल प्रभावित हो जाती है।

बचाव

फसल को इस रेाग से बचाने के लिए बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम थायरम या बाबस्टीन आदि किसी भी गैर प्रतिबंधित फफूंदनाशक दवा से प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकार उपचार करना चाहिए। इसके बाद ही बीज को खेत में बोना चाहिए।

सरसों कुल की फसलों के रोग

बंद गोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, सरसों एवं मूली फसल में कृष्ण गलन रोग काफी नुकसान पहुंचाता है। यह रोग जीवाणु जनित होता है। रोग का प्रसार पत्त्यिों के किनारों पर हरिमाहीन धब्बों के बनने की प्रक्रिया से शुरू होता है। पत्तियों की शिराएं भूरी होकर बाद में काली पड़ जाती हैं। धीरे धीरे पत्तियां पीली पड़कर झड़ने लगती हैं।

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बचाव

रोग रहित बीज का प्रयोग करेंं। बीज को 50 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी में आधा घण्टे तक रखेंं। संक्रमित पौधों को उखाड़ दें। रोग से छुटकारा पाने के लिए बीज का रासायनिक उपचार करें। इसके लिए एग्रीमाइसिन 100 की एक प्रतिशत अथवा स्टेप्टोसाइक्लिन एक प्रतिशत का उपयोग करें। खडी फसल पर स्टेप्टोसाइक्लिन 18 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा कॉपरआक्सीक्लोराइड का तीन प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिए।

प्याज का बैंगनी धब्बा रोग

यह रोग समूचे प्याज लहसुन की खेती वाले इलाकों में होता है। यह रोग पहले सफेद धंसे विक्षतों के रूप में दिखाई देता है। धीरे धीरे इनका आकार बढ़ता है और बाद में यह धारी का आकार ले लेते हैं। धीरे धीरे इनका रंग भूरा हेाता है और पौधा इसी स्थान से गलना आरंभ हो जाता है। इसके बाद सूखने लगता है।

बचाव

बचाव के लिए बीज का थीरम से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करने के बाद बोना चाहिए। फसल पर कार्बेन्डाजिम एवं मेन्कोजेब के मिश्रण का छिड़काब करना चाहिए। रोग का लक्षण दिखाई देने पर टोबुकोनाजोल 50 प्रतिशत एवं ट्राइफ्लोक्सीस्ट्राबिन 25 प्रतिशत का 80 से 100 ग्राम मात्रा में 200 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।

बाजरा की फसल

बाजरा की फसल में भी अर्गट रोग लगता है। इसके अलावा हरी बाली रोग भी लगता है। इस तरह के रोगों का पता आरंभिक अवस्था में नहीं चलता। बाद में बाली बनने की अवस्था पर पता चलने पर शुरूआत में ही यदि उपचार किए जाए तो ठीक अन्यथा बालियों में दाने ही नहीं बनते और किसानों को केवल चारे से ही संतुष्ट होना पड़ता है। इससे बचाव के लिए प्रतिरोधी किस्मों की बिजाई करें। बीज को प्रभावी दवाओं से उपचारित करके बोएंं।
संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली जिसे पूसा संस्थान के नाम से जाना जाता है ने अपने 115 वर्षों के सफर में देश की कृषि को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हरित क्रांति के जनक के रूप में पूसा संस्थान में विभिन्न फसलों की बहुत सारी किस्में निकाली हैं जिनसे हम अपने देश की जनता को संतुलित आहार दे सकते हैं और अपने किसानों के लिए खेती को लाभदायक बना सकते हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पूसा सस्थान द्वारा निकाली गई कुछ फसलों की मुख्य किस्में व उनकी विशेषताओं के विषय में हम आपको बता रहे हैं।

संतुलित आहार की उन्नत किस्में

धान

Dhan ki kheti 1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140  दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है। 3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है। 4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. 5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है। 6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. ये भी पढ़े: धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है 7-पूसा बासमती 1609 का उत्पादन 46 कुंटल पकने का समय 120 दिन व बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रति प्रतिरोधी है। 8-पूसा बासमती 1637 का उत्पादन 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अवधि 130 दिन है । यह ब्लाइट प्रतिरोधी है. 9-पूसा बासमती 1728 का उत्पादन 41.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकाव  अवधि 140 दिन है। वह किसी भी बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है। 10-पूसा बासमती 1718 का उत्पादन 46.4 कुंटल प्रति हेक्टेयर बोकारो अवधि 135 दिन है। यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोध ही है। 11-पूसा बासमती 1692 का उत्पादन 52.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह पकने में 115 दिन का समय लेती है। उच्च उत्पादन जल्दी पकने वाली किस्म है।

 गेहूं

gehu ki kheti 1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है। 2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है। 3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है। 4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है। 5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है। 6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है। 7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल 8-एच आई 1620 से 49.1 कुंदन उत्पादन के 40 दिन में मिलता है। यह कंम पानी वाली किस्म है। 9-एच आई 1628 से 50.4 कुंतल उत्पादन 147 में मिलता है। 10-एच आई 1621 से 32.8 कुंतल उत्पादन 102 दिन में मिल जाता है यह पछेती किस्म है। 11-एचडी 3271 किस्म से कुंतल उत्पादन 104 दिन में मिलता है यह अति पछेती किस्म है पीला रतुआ प्रतिरोधी है। 12-एचडी 3298 से 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 104 दिन में मिल जाता है।

मक्का

Makka ki kheti 1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है। 2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है। 3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है। बाजरा (खरीफ) 1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।

चना

chana ki kheti 1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।

अरहर

arhar ki kheti 1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है। 2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है। 3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है। 4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।

मूंग (खरीफ)

Mung ki kheti 1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है। 2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है। 3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

मसूर

masoor ki dal 1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म  फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।

सरसों(रबी)

sarson ki kheti 1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। 2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है। 3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है। 4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3  कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है। 5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।

सोयाबीन (खरीफ)

soybean 1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। 2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।

लेखक

राजवीर यादव, फिरोज हुसैन, देवेंद्र के यादव एवं अशोक के सिंह
धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है

धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है

कोविड-19 के प्रभाव के चलते इस बार धान की रोपाई के लिए मजदूरों का संकट हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। धान की सीधी बिजाई इसका श्रेष्ठ समाधान है। धान की खेती सीधी बुवाई कम पानी वाले, जलभराव वाले एवं वर्षा आधारित खेती वाले सभी इलाकों में की जा सकती है। 

धान तिलहन है या दलहन

धान ना तो तिलहन है ना दलहन है। दलहनी फसल में होती है जिनमें से तेल निकलता है यानी सरसों अरंडी तिल अलसी आदि। दलहनी फसलें वह होती है जिनकी दाल बनाई जाती है यानी चना उर्दू मून मशहूर राजमा आदि। धान अनाज है खाद्यान्न है। 

क्या है सीधी बिजाई का तरीका

 

 धान की सीधी बिजाई गेहूं जो जैसी फसलों की तरह ही की जाती है। बिजाई के लिए धाम को नर्सरी डालने की तरह ही 12 घंटे पानी में भिगोया जाता है उसके बाद जूट के बैग में अंकुरित होने के लिए रखा जाता है।कार्बेंडाजिम 223 जैसे किसी फफूंदी नाशक से उपचारित किए हुए इस बीच को थोड़ा खुश्क करके बो दिया जाता।

क्या है सीधी बिजाई के फायदे

इस तकनीकी से धान की फसल लगाने से उत्पादन लागत में भारी कमी आती है। 50 से 60% तक डीजल की बचत होती है। 30 से 40 फ़ीसदी श्रमिकों पर होने वाले खर्चे में बचत होती है। उर्वरकों के उपयोग में भी इजाफा होता है। इस तरह धान की फसल लेने से जहरीली मीथेन गैस का उत्सर्जन भी बेहद कम हो जाता है जोकि पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अहम है। 


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कब करें धान की बुवाई

धान की खेती बुवाई मानसून आने से 10 से 15 दिन पूर्व कर देनी चाहिए। इससे पूर्व खेत को तीन से चार बार एक एक हफ्ते के अंतराल पर गहरा जोतना चाहिए। जुताई के बीच में अंतराल इसलिए रखना चाहिए ताकि जमीन ठीक से सीख जाए और उसमें मौजूद हानिकारक फफूंदी नष्ट हो जाएं। खेतों को कभी एक ही बार में तीन से चार बार नहीं जोतना चाहिए। 

सीधी बिजाई के लिए धान की किस्में

धान की सीधी बिजाई के लिए पूसा संस्थान की सुगंध 5, 1121, पीएचवी 71, नरेंद्र 97, एमटीयू 1010, एच यू आर 3022, सियार धान 100 किस्म प्रमुख हैं। 

बीज दर

सीधी बिजाई के लिए मोटे धान की 20 से 25 किलोग्राम बीज एवं बारीक धान की 10 से 12 किलोग्राम बीज को अंकुरित करके बोया जा सकता है। 

उर्वरक प्रबंधन

धान की सीधी बिजाई के लिए आखरी जुताई की समय 50 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश एवं 25 किलोग्राम जिंक को आखरी जुताई में मिला देना चाहिए। जिंक और फास्फोरस को एक साथ नहीं मिलाना चाहिए अन्यथा फास्फोरस निष्प्रभावी हो जाता है। 100 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन की जरूरत होती है इसकी एक तिहाई मात्रा जुताई में मिला दें बाकी फसल बढ़वार के लिए प्रयोग में लाएं। 

खरपतवार नियंत्रण

धान की सीधी बुवाई के बाद पेंडा मैथलीन दवा की एक किलोग्राम मात्रा को पर्याप्त पानी में घोलकर बुवाई के 24 घंटे के अंदर मिट्टी पर छिड़क देना चाहिए ताकि खरपतवार उगें ही नहीं। फसल बढ़वार के समय उगने वाले खरपतवार को मारने के लिए नॉमिनी गोल्ड दवा का छिड़काव करें।

धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

हमारे देश के बड़े भूभाग में धान की फसल की जाती है। पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत में तो धान की ही मुख्य फसल होती है। धान की फसल की बुआई, रोपाई और कटाई में बहुत से श्रमिकों की आवश्यकता होती है। किसान भाइयों आज का समय पैसे कमाने का समय है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिश्रम का अधिक से अधिक मेहनताना लेना चाहता है। इसके लिए आज के श्रमिकों ने खेती किसानी का काम छोड़ करन परदेश जाकर कारखानों में काम करना शुरू कर दिया है। इस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों का अभाव हो गया है। इस वजह से खेती किसानी करना बहुत मुश्किल होता जा रह है। जो श्रमिक गांवों में बचे रह गये हैं वे भी अपने अन्य भाइयों के समान औद्योगिक श्रमिकों की तरह मेहनताना मांगते हैं। इससे खेती की लागत उतनी अधिक बढ़ जाती है जितना उत्पादन नहीं हो पाता है। इसलिये किसान भाई वो काम नहीं कर पाते हैं।

धान की फसल की बुआई, रोपाई और कटाई

Content

  1. समय पर कटाई से बच जाता है नुकसान
  2. हंसिया (Sickle)
  3. ब्रश कटर (Brush Cutter)
  4. क्या होता है ब्रश कटर
  5. कम्बाइंट हार्वेस्टर (Combined Harvester Machine)
  6. क्या होती है कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)
  7. क्या होता है कम्बाइंड हार्वेस्टर कटर
  8. रीपर मशीन (Reaper Machine)
  9. क्या होता है रीपर मशीन
  10. हाथ से चलने वाली मशीन (हैंड रीपर)
  11. छोटे वाहन वाली मशीन (सेल्फ प्रॉपलर मशीन)
  12. ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन (ट्रैक्टर माउंटेड)

समय पर कटाई से बच जाता है नुकसान

खेती किसानी का काम समय से होना चाहिये तभी आपको अधिक उत्पादन मिल सकता है। श्रमिकों के अभाव में किसान भाइयों की खेती प्रभावित होती है। कभी लेट बुआई होती है तो कभी निराई गुड़ाई नहीं हो पाती है। कभी सिंचाई देर से हो पाती है अथवा फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई नहीं हो पाती है। कीट व रोग के प्रकोप से नियंत्रण में भी असर पड़ता है। कुल मिलाकर श्रमिकों के बिना खेती पूरी तरह से प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को खेती के आधुनिक तरीके और आधुनिक उपकरणों और मशीनों का इस्तेमाल करना चाहिये। इन मशीनों व उपकरणों से मानव श्रम से अधिक और बहुत ही साफ सुथरा काम हो जाता है। लागत  व समय भी कम लगता है। आइये हम आज धान की फसल को काटने वाली छोटे उपकरण से लेकर बड़ी मशीनों तक की चर्चा करेंगे। जो इस प्रकार है:-
  1. हंसिया या हंसुआ: (Sickle)

यह किसानों का पारंपरिक कटाई का औजार, उपकरण या हथियार है। इससे किसी प्रकार की फसल की कटाई की जा सकती है। धान की फसल की कटाई इसी हथियार से की जाती है। छोटे किसान आज भी अपने परिवार के साथ इसी हथियार से कटाई करते हैं। इससे फसल की कटाई में काफी समय लगता है। जब धान की फसल पक गयी हो और खेत में पानी भरा हो तब यही हथियार फसल की कटाई के काम आता है।
  1. ब्रश कटर (Brush Cutter)

हाथ से कटाई करने में बहुत श्रमिक और बहुत समय लगता है। इससे किसान भाइयों का समय व पैसा बहुत बर्बाद होता है। धान की फसल की समय पर कटाई होनी बहुत जरूरी होती है। यदि समय पर धान की फसल की कटाई नहीं की गई तो बहुुत नुकसान होता है। आज के समय में खेतों में काम करने वाले मजदूर न मिलने के कारण किसानों के समक्ष बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है। ऐसे में समय पर कटाई करना किसान भाइयों के लिए टेढ़ी खीर बन गयी है। इस समस्या को आधुनिक यंत्रों व मशीनों के द्वारा हल किया जा सकता है। पहले तो व्यापारियों ने धान की फसल कटाई के लिए बड़ी बड़ी मशीनें मार्केट में उतारीं, जिन्हें किराये पर लेकर काम कराया जा सकता था। लेकिन इन मशीनों का किराया भी इतना अधिक था कि प्रत्येक किसान उसको वहन नहीं कर सकता था। इसलिये अब बाजार में छोटी मशीनें आ गयी है। इसमें एक ब्रश कटर नाम से एक ऐसी मशीन आ गयी है, जिसको किसान अकेले ही दस मजदूरों के बराबर फसल की कटाई कर सकता है।  पेट्रोल से चलने वाली यह मशीन महीनों का काम घंटों में कर देती है। ये भी पढ़े: आधुनिक तकनीक अपनाकर घाटे से बचेंगे किसान

कितना है मैनुअल व मशीन के काम व दाम में अंतर

जानकार लोगों का दावा है कि एक एकड़ की मजदूरों द्वारा खेती की धान की फसल की कटाई पर लगभग 5 हजार रुपये का खर्च आता है। लेकिन इस मशीन से मात्र 500  रुपये में एक ही व्यक्ति कटाई कर सकता है। यदि किसान भाई यह काम करने में सक्षम हो तो ठीक वरना इस मशीन को चलाने वाले बहुत से लोग आ गये हैं। इस मशीन की खास बात यह है कि इसमें फसल के अनुसार ब्लेड लगाकर अलग-अलग तरह की फसलों की कटाई की जा सकती है। यह मंशीन कंधे पर टांग कर फसल की कटाई की जा सकती है। खेत में पानी भी भरा हो तब भी किसान भाई इस मशीन से कटाई कर सकते हैं। यदि किसान भाई इस मशीन की मेंटीनेंस अच्छी तरह से करे तो यह मशीन अपनी कीमत एक साल में ही निकाल देती है। यह मशीन अधिक महंगी भी नहीं है।

क्या होता है ब्रश कटर (Brush Cutter):-

ये भी पढ़े: भूमि की तैयारी के लिए आधुनिक कृषि यन्त्र पावर हैरो छोटे किसानों के लिए यह एक ऐसी आधुनिक मशीन है, जिसके माध्यम से किसान भाई केवल धान फसल की कटाइई ही नहीं कर सकते हैं बल्कि इससे अनेक प्रकार की फसलों च चारे की कटाई आसानी से कर सकते हैं। इस मशीन से खेतों में रुका हुआ थोड़ा बहुत पानी भी निकाल सकते हैं। अब यह मशीन पेट्रोल और मोबिल आयल से चलने वाली 4 स्ट्रोक वाली मोटर से लैस मशीन है। इसमें एक हैंडल दिया गया है। हैंडल के आगे कटर लगाने के लिए स्थान दिया गया है। इसमें आप अपनी जरूरत के ब्लेड लगाकर अपनी मनचाही फसल काट सकते हैं। इसका वजन 7 से 10 किलो तक का होता है।

किसी ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं

इस मशीन को चलाने के लिए कोई खास ट्रेनिंग नहीं लेनी होती है। शुरू के 10 से 15 मिनट में नये व्यक्ति को परेशानी होती है। एक बार इसको चलाने का तरीका जानने के बाद इसे आसानी से चलाया जा सकता है। इतनी ट्रेनिंग मशीन बेचने वाली कंपनी के टेक्नीशियन दे देते हैं। इसके अलावा इस मशीन को किसान भाई तो चला सकते हैं और उनकी अनुपस्थिति में घर की महिलाएं भी आसानी से चला सकतीं हैं।
  1. कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)

धान फसल की कटाई के लिए कम्बाइंड हार्वेस्ट मशीन का उपयोग तेजी से होने लगा है। इस मशीन के माध्यम से खेत में खड़ी फसल की बालियों यानी अनाज की कटाई की जाती है और उसकी मढ़ाई और गहाई की जाती है। यह मशीन जमीन से 30 सेंटीमीटर ऊपर से फसल काटती है और खेत में ठूंठ छोड़ देती है इससे पुआल का नुकसान होता है। दूसरा समय पर खेत को खाली करने के लिए किसान भाइयों को जल्दी होती है और उस समय कोई दूसरा उपाय न सूझने के कारण खेत में पराली को जला दिया जाता है। इससे जानवरों के चारे का नुकसान होता है दूसरा पर्यावरण प्रदूषित होता है।

नुकसान के बावजूद है फायदे का सौदा

हालंकि मजदूरों की अपेक्षा आधी कीमत पर बहुत कम समय में अच्छी तरह से कटाई, मढ़ाई और गहाई हो जाती है। इसलिये किसान भाई इस मशीन का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह की मशीन का इस्तेमाल बड़े किसान भाई करते हैं जिनके पास लम्बी चौडी खेती है और समय पर मजदूर नहीं मिल रहे हैं तो उनके पास इसी तरह की मशीन का ही एकमात्र विकल्प बचता है। लेकिन इस मशीन की इस कमी को देखते हुए अनेक तरह के आकर्षक रीपर मार्केट में आ गये हें। जिनसे जमीन से 5 सेंटी ऊपर की कटाई की जाती है। इससे किसान भाइयों के समक्ष ठूंठ व पराली वाली समस्या नहीं आती है।  चारे व अन्य काम के लिए बची पुआल भी काम में आ जाती है।

क्या होती है कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)

यह मशीन वास्तव में बड़े किसानों के इस्तेमाल के लिए होती है। यह मशीन महंगी होती है तथा इसको किराये पर चलाने के उद्देश्य से भी लिया जा सकता है। यह मशीन सूखे खेत में ही चलाई जा सकती है। जो किसान भाई कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन का इस्तेमाल करना चाहें तो प्रॉपलर या ट्रैक्टर में लगाकर इस मशीन को इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह की मशीन बनाने वालों में दशमेशर, हिंद एग्रो, न्यू हिन्द, प्रीत, क्लास आदि ब्रांड के हार्वेस्टर कटर आते हैं। ये चौड़ाई के अनुसार दो फिल्टर्स आते हैं। इनकी चौड़ाई 1 से 10 व 11 से 20 फीट तक होती है। इसके अलावा आप अपनी जरूरत के हिसाब की चौड़ाई वाले फिल्टर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  1. रीपर मशीन (Reaper Machine)

यह भी ब्रश कटर से मिलती जुलती मशीन है। इस मशीन में भी कटर का इस्तेमाल होता है। इस मशीन की खास बात यह है कि यह कई साइजों में आती है। इस मशीन को किसान भाई अपनी क्षमता व जरूरत के हिसाब से लेकर इस्तेमाल कर सकते हैं अथवा किराये पर लेकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मशीन हाथ ठेले के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है, इसे मिनी ट्रैक्टर या छोटी गाड़ी में भी लगाकर फसल की कटाई की जा सकती है। इसको बड़े ट्रैक्टर में भी लगाकर फसल की कटाई की जा सकती है। यह मशीन धान की फसल की कटाई के लिए तो उपयुक्त है ही। साथ ही गेहूं  सहित अनेक फसलों को भी इससे काटा जा सकता है।

क्या होती है रीपर मशीन (Reaper Machine)

आधुनिक कृषि उपकरणों में इस मशीन की गिनती होती है। यह मशीन ऐसी है जिसे हर तरह का किसान अपनी क्षमता के अनुसार खरीद कर फसल की कटाई आसानी से कर सकता है। जहां पर फसल की कटाई के लिए कम्बाइंड हावेस्टर और ट्रैक्टर नहीं पहुंच पाता है वहां पर यह मशीन काम आती है। यह मशीन छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी आती है। मुख्यत: तीन प्रकार की ये मशीन होती है।
    1. हाथ से चलने वाली मशीन हैंड रीपर (Hand Reaper Machine)
    2. छोटे वाहन वाली मशीन सेल्फ प्रॉपलर मशीन (Self Propeller Machine)
    3. ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन ट्रैक्टर माउंटेड (Tractor Mounted Machine)
  1. हाथ से चलने वाली मशीन हैंड रीपर (Hand Reaper Machine)

यह मशीन मूलत: छोटे किसानों के लिए होती है। यह एक पॉवरफुल मशीन होती है जो हाथों से एक व्यक्ति द्वारा चलाई जाती है। इसमें एक 5 हॉर्सपॉवर का इंजन लगा होता है। पेट्रोल व डीजल से चलने वाले इंजन अलग-अलग आते हैं। इसमें आगे की तरफ रीपर में ब्लेड़स लगे रहते हैं जिससे फसल की कटाई की जाती है। इसमें पीछे एक हैंडल लगा होता है और इसमें दो मजबूत रबर के टायर भी लगे होते हैं। हैंडल में दो गियर भी लगे होते हैं। किसान भाई हैंडल को पकड़ कर इस मशीन को खेतों में धकेलते जाते हैं और गियर के इस्तेमाल से फसल की कटाई होती रहती है। यदि इस मशीन को कहीं दूर ले जाना होता है तो इसको मोटर व मशीन को आसानी से अलग-अलग भी किया जा सकता है और इस्तेमाल के समय जोड़ा भी जा सकता है।
  1. छोटे वाहन वाली मशीन यानी सेल्फ प्रॉपलर मशीन (Self Propeller Machine)

जो किसान मध्यम श्रेणी में आते हैं और जिनकी खेती का रकबा थोड़ा बड़ा होता है, जो थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च कर सकते हैं तो वे छोटे वाहन यानी सेल्फ प्रॉपलरवाली मशीनों को खरीद कर फसल की आसान कटाई कर सकते हैं। इसमें एक सीटर वाहन होता है। उसमें रीपर में ब्लेड लगे होते हैं। इस एक सीटर वाहन में किसान भाई आराम से बैठ कर रीपर के माध्यम से फसलों की कटाई आसानी से कर सकते हैं। समय, पैसा दोनों ही बचा सकते हैं। ये भी पढ़े: कल्टीवेटर से खेती के लाभ और खास बातें

रीपर बाइंडर मशीन (Reaper Binding Machine)

रीपर बाइंडिंग मशीन ऐसी मशीन होती है जो खेत में फसल की कटाई के साथ पौधों का बडल यानी पूला बना देती है। इससे किसान भाइयों को काफी सुविधा होती है।
  1. ट्रैक्टर माउंटेड मशीन (Tractor Mounted Machine)

यह मशीन बड़े किसानों के लिए होती है। यह मशीन ट्रैक्टर में लगायी जाती है। यह मशीन उन किसानों के लिए है, जिनकी बड़ी काश्तकारी है और उनके पास काम करने वाले श्रमिकों की संख्या कम होती है। ऐसे किसान अपने खेत के काम निपटा कर दूसरों के खेतों पर कटाई का व्यवसाय कर सकते हैं। इस तरह से किसान इसको किराये पर चला कर अपना व्यवसाय भी कर सकते हैं।
खरीफ सीजन में धान की फसल की इस तरह करें देखभाल होगा अच्छा मुनाफा

खरीफ सीजन में धान की फसल की इस तरह करें देखभाल होगा अच्छा मुनाफा

धान की रोपाई के पश्चात फसल को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता पड़ती है। इस वजह से उर्वरक, खाद एवं सिंचाई के साथ दूसरे प्रबंधन कार्य ठीक तरह से कर लेने चाहिये। खरीफ सीजन में भारत के अधिकांश किसान अपने खेतों में धान की फसल लगाते हैं। चावल का बेहतरीन उत्पादन पाने के लिये आरंभ से अंत तक प्रत्येक कार्य सावधानी पूर्वक किया जाता है। परंतु, इतने परिश्रम के बावजूद धान के कल्ले निकलते वक्त विभिन्न समस्याऐं सामने आती हैं। धान की फसल के लिये यह सबसे आवश्यक समय होता है। इस वजह से आवश्यक है, कि उर्वरक, खाद एवं सिंचाई सहित दूसरे प्रबंधन कार्य सही तरह करके धान का अच्छा उत्पादन अर्जित किया जाये। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, रोपाई के उपरांत फसल को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। इस दौरान कीड़े एवं रोगों का नियंत्रण तो करना ही है। साथ ही, उत्पादन बढ़ाने वाले वैज्ञानिक नुस्खों पर कार्य करना फायदेमंद माना जाता है।

खेत से जलभराव की समुचित निकासी का प्रबंध करें

यदि फसल में अधिक जलभराव की स्थिति है, तो जल निकासी करके अतिरिक्त जल को खेत से बाहर निकाल दें। उसके बाद में हल्की सिंचाई का काम करते रहें, जिससे मृदा फटने की दिक्कत न हो सके। यह कार्य इस वजह से जरूरी है, कि फसल की जड़ों तक सौर ऊर्जा पहुंच सके। साथ ही, फसल में ऑक्सीजन की सप्लाई भी होती रहे। यह कार्य रोपाई के 25 दिन उपरांत ही कर लेना चाहिए, जिससे कि समय रहते पोषण प्रबंधन किया जा सके।

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धान की फसल की बढ़वार के लिए समय पर पोषण की आवश्यकता होती है

धान की रोपाई के 25-50 दिन के दरमियान धान की फसल में कल्ले निकलने शुरू हो जाते हैं। ये वही वक्त है जब धान के पौधों को सबसे ज्यादा पोषण की आवश्यकता होती है। इस दौरान धान के खेत में एक एकड़ के हिसाब से 20 किलो नाइट्रोजन एवं 10 किलो जिंक का मिश्रण तैयार कर फसल पर छिड़क देना चाहिये। कृषक भाई यदि चाहें तो अजोला की खाद भी फसल में डाल सकते हैं।

फसलीय विकास एवं उत्तम पैदावार हेतु निराई-गुड़ाई

फसल का विकास और बेहतरीन उत्पादन के लिये धान के खेत में निराई-गुड़ाई का कार्य भी करते रहें। इससे फसल में लगने वाली बीमारियां एवं कीड़ों के प्रकोप का पता लग जाता है। निराई-गुड़ाई करने से जड़ों में आक्सीजन का प्रभाव होता है और पौधों के विकास में सहयोग मिलता है। कृषक भाई चाहें तो फसल पर उल्टी एवं सीधी दिशा में बांस से पाटा लगा सकते हैं, जिससे जड़ों में खिंचाव होने लगता है। साथ ही, बढ़वार भी काफी तेजी से होने लगती है।

धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण

अक्सर धान के खेत में गैर जरूरी पौधे उग जाते हैं, जो धान से पोषण सोखकर फसल की उन्नति से रोकते हैं, इन्हें खरपतवार कहते हैं। खरपतवार को नष्ट करने हेतु 2-4D नामक खरपतवार नाशी दवा का स्प्रे करें। पेंडीमेथलीन 30 ई.सी भी एक प्रमुख खरपतवार नाशी दवा है, जिसकी 3.5 लीटर मात्रा को 850-900 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के मुताबिक खेतों में डाल देना चाहिये।

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जैविक खाद का इस्तेमाल धान की फसल में किया जाता है

प्राचीन काल से ही धान की फसल से बेहतरीन उत्पादन लेने के लिये जैविक विधि अपनाने का सलाह मशवरा दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, धान एंजाइम गोल्ड का उपयोग करके बेहद लाभ उठा सकते हैं। बतादें, कि धान एंजाइम गोल्ड को समुद्री घास से निकाला जाता है। जो धान की बढ़वार और विकास में सहयोग करता है। यह ठीक अजोला की भांति कार्य करता है, जिससे कीड़ों एवं रोगों की संभावना भी कम हो जाती है। इसके छिड़काव के लिये एक मिली. धान एंजाइम गोल्ड को एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनायें। साथ ही, एक हेक्टेयर खेत में इसकी 500 लीटर मात्रा का इस्तेमाल करें।
धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की लगभग एक तिहाई जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। भारत में अनेक प्रकार की फसलें बोई जाती हैं। प्रत्येक फसल के बोने व काटने का समय अलग अलग होता है। इसी प्रकार धान की भी फसल है जो एक प्रकार की खरीफ की फसल है। यह हमारे देश को लोगों का एक प्रमुख खाद्यान्न है। इसके अलावा मक्का के बाद जो फसल सबसे ज्यादा बोई जाती है वो धान है। अगर इसकी खेती में पर्याप्त सावधानी बरती जाए तो इससे किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। धान की खेती की संपूर्ण जानकारी ।

धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कार्य

धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कार्य है अच्छे बीज का चयन करना। कई बार किसान महंगे बीज खरीदने के बावजूद भी अच्छी फसल नहीं उगा पता। इसका मुख्य कारण है उसके द्वारा एक स्वस्थ बीज का चयन ना कर पाना। इसके कारण चुना गया बीज महंगा नहीं बल्कि वहां की जलवायु के अनुरूप होना चाहिए। हम जानते हैं कि धान की खेती हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में की जाती है। विभिन्न हिस्सों की। जलवायु भी भिन्न भिन्न होती है इसके लिए किसानों को वहां की जलवायु के हिसाब से उन्नत बीजों का चयन करना चाहिए।

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बुवाई का समय :-

धान की फसल एक प्रकार की खरीफ की फसल है जो मुख्य रूप से बरसात शुरू होने के पहले बोई जाती है। यह फसल मई की शुरुआत में बोई जाती है, ताकि मानसून आते ही किसान धान की रोपाई शुरू कर दें। धान की फसल में मुख्य रुप से ध्यान रखने योग्य बात बीज का शोधन है इसमें किसान कई महंगे बीजों को खरीद कर फसल में अच्छी लागत नहीं पा पाते। इसके लिए किसानों को उच्च गुणवत्ता के बीच के साथ बीजों का उपचार भी करना चाहिए।

बीजोपचार :-

आज की खेती में मुख्य बात बीजों का चयन करना है एवं बीजों का शोधन है। किसानों को बीजों के शोधन के प्रति जागरूक होना चाहिए ऐसा करने से धान की फसल को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है धान की 1 हेक्टेयर की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में सिर्फ 25-30 खर्च करने होते हैं। ये भी पढ़े: धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी बीज उपचार करने के लिए हमें एक घोल तैयार करना होता है। इस घोल को तैयार करने के लिए एक बर्तन में 10 लीटर पानी लेते हैं और उसमें लगभग 1.5 किलो नमक मिलाते हैं अब इस पानी ने एक आलू या फिर एक अंडा डालते हैं अगर आलू घील पर तैरने लगे तो समझ जाओ कि हमारा होल तैयार हो गया है और अगर आलू या अंडा घोल पर नहीं तैरता है तो पानी में उस समय तक नमक मिलाते रहें जब तक कि आलू घोल तैरने ना लगे। अब इस घोल में धीरे-धीरे करके धान के बीज डालते हैं जो भी इस घोल के ऊपर तैरने लगते हैं बेबीज कम गुणवत्ता के होते हैं उन्हें निकाल कर बाहर फेंक देना चाहिए और जो भी बोल में डूब जाते हैं वह बीज बुवाई के योग्य होते हैं। इस गोल के माध्यम से हम धान के बीजों का शोधन तीन से चार बार तक कर सकते हैं। बीजों का शोधन करने के बाद प्राप्त बीजों को तीन से चार बार पानी में अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।

क्षेत्र के हिसाब से धान की उन्नत किस्मों का चुनाव :-

हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु पाई जाती है ऐसे में धान की अच्छी फसल पाने के लिए क्षेत्र के हिसाब से बीजों का चयन भी एक प्रमुख कार्य है इसके लिए उस क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से बीजों का चयन किया जाता है।

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बीज की बुवाई/पौधों की रोपाई :-

बीजों की बुवाई के लिए सबसे पहले जमीन को बीजों की बुवाई के योग्य बनाया जाता है। इसके लिए किसान एक नर्सरी तैयार करें और मुख्य खेत में रोपाई करें। सबसे पहले किसान पौधों को नर्सरी में तैयार करें इसके बाद उसे जड़ से उखाड़ कर खेत में ले जाकर उसकी रोपाई करें रोपाई में पौधों की बीच की दूरी का ध्यान रखना चाहिए। एक जगह पर एक से दो पौधों की ही रोपाई की जाए।

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जिस खेत में पानी ना भरता हो उस खेत में धान की रोपाई श्रीविधि से करें। इस विधि में खेत में पानी ना भरने दें इसमें खेत की समय-समय पर सिंचाई करते रहें इस विधि में सिंचाई करने के लिए गेहूं के जैसे ही सिंचाई करें। और धान का प्रबंधन सभी धान की तरह करें।
धान की रोपाई

धान की रोपाई

दोस्तों आज हम बात करेंगे, धान की रोपाई की यदि आप एक किसान भाई हैं और आपको धान की रोपाई की पूरी जानकारी सही तरह से मालूम नहीं है, तो आप की फसल खराब हो सकती है। इसलिए आप धान की रोपाई की सभी प्रकार की आवश्यक बातें को जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक बने रहें: 

धान की रोपाई करने का तरीका (Paddy transplanting method):

धान की रोपाई करने से पहले खेत को अच्छी तरह से दो से तीन बार गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। किसान भाई धान की रोपाई करने के लिए एक हफ्ते पहले ही खेत की अच्छी तरह से सिंचाई कर लेते हैं। रोपाई करने के लिए हैरो की आवश्यकता पड़ती है यह जुताई लगभग दो से तीन बार हैरो द्वारा की जाती है। जुताई करने के बाद खेत को अच्छी तरह से पानी से भर दिया जाता है। खेतों में पडलर और टिलर की सहायता से जुताई की जाती है। जताई करने के बाद खेतों में पाटा लगाकर मिट्टी को अच्छी तरह से समतल बना दिया जाता है।

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धान की रोपाई करते समय खाद का उपयोग:

धान की फसल किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। इस फसल से किसान को काफी मुनाफा होता है। धान की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आखिरी जुताई में किसान लगभग 100 से लेकर150 कुंटल पर हेक्टर गोबर की सड़ी खाद का इस्तेमाल कर खेतों में डालते हैं। खाद डालने के साथ ही साथ लगभग उर्वरक 120 किलोग्राम वही नत्रजन 60 किलोग्राम तथा फास्फोरस 60 किलोग्राम पोटाश तत्वों का इस्तेमाल करते हैं। इन खादो का इस्तेमाल करने से धान की अच्छी फसल का उत्पादन होता है। 

धान की फसल में पहली खाद कब डालें:

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सूर्य प्रकाश की कमी हो जाने से फसलें काफी नाजुक और कमजोर हो जाती है।ऐसी स्थिति में आप को समय रहते ही यूरिया खाद का इस्तेमाल करना चाहिए।15 से 20 दिन के अंदर पौधों को सूर्य प्रकाश ना मिले तो यूरिया खाद का इस्तेमाल करें। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस तरीके को अपनाने से फसल खराब नहीं होने पाती और धान की फसल की अच्छी पैदावार होती है।

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धान की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खाद डालने के इस तरीके को अपनाना आवश्यक होता है। 

धान की रोपाई करने के बाद, खाद कितने दिनों में डाले :

किसानों के अनुसार धान की रोपाई करने के बाद यदि ऐसा लगता है। कि धान की फसल में खाद डालने की आवश्यकता है की नही तभी फसलों में खाद डालें। धान की रोपाई में लगभग 35 दिनों के बाद खाद डालते हैं। परंतु बिना कृषि वैज्ञानिकों की सलाह अनुसार धान की फसल में खाद ना डालें।

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धान की फसल में नमक का इस्तेमाल:

धान खरीफ की सबसे प्रमुख फसल मानी जाती है। अल्पवर्षा के मौसम में लगभग 15 दिनों के लिए फसलों को सुरक्षित रखने के लिए नमक का छिड़काव करना उपयोगी होता है। नमक के छिड़काव से फसल बारिश से पूरी तरह सुरक्षित रहती है। नमक छिड़काव से भूमि में नमी बनी रहती है। इस प्रक्रिया को अपनाने से भूमि की उर्वरक क्षमता में भी कोई कठिनाई या फर्क नहीं पड़ता है। इसीलिए नमक का छिड़काव करना धान की फसल के लिए उपयोगी होता है। 

धान की फसल में कीटनाशक का उपयोग:

कभी-कभी ऐसा होता है, कि धान की फसल में फुदका रोग लगने की संभावना बन जाती है। यह स्थिति फसलों में पानी भर जाने के कारण पनपती है। मान लीजिए अगर फसलों में फुदका रोग लग गया हो तो, फसलों की सुरक्षा करने के लिए कीटनाशक क्लोरोपाइरीफास Chlopyrriphos कि लगभग 1 मिलीलीटर मात्रा को पूरे खेतों में अच्छी तरह से छिड़काव कर दे। 

धान की प्रमुख किस्में:

धान की प्रमुख किस्में कुछ इस प्रकार है: धान की किस्में सिंचित दशा, जो सिंचित क्षेत्रों मे जल्दी पकने वाली किस्में कही जाती है। धान की दूसरी किस्म पूसा जो लगभग 169 दिनों में पक जाती है। धान की कुछ लोकप्रिय किस्म पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1728, कावेरी 468, पूसा बासमती 1692, पूसा PB1886, पूसा-1509 आदि है। धान की नरेंद्र किस्म जो 80 दिनों का समय लेती है। पंत धान 12 तथा मालवीय धान-3022, उसके बाद नरेन्द्र धान-2065, धीमी पकने वाली पंत धान 10, पंत धान-4, और सरजू-52, नरेन्द्र-359, नरेन्द्र-2064, नरेन्द्र धान-2064, पूसा-44, पीएनआर लगभग प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार 381 प्रमुख किस्में मौजूद है।

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धान की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान दे:

  • कुछ परिस्थितियां में जैसे, क्षेत्रीय जलवायु तथा मिट्टी का चयन, सिंचाई का साधन होना, जलभराव की समस्या, बुवाई कैसे करें, रोपाई की व्यवस्था आदि समस्याओं से बचने के लिए पहले ही प्रबंध बनाएं। धान की रोपाई करते समय हमेशा अच्छी बीज प्रजाति का चयन करें।
  • हमेशा धान की रोपाई करते समय शुद्ध प्रमाणित एवं शोधित बीज ही बोयें। ताकि फसल खेतों में पूरी तरह से उत्पादन हो सके।
  • खेतों में खाद डालते समय अच्छी तरह से मृदा परीक्षण हो जाने के बाद ही संतुलित उर्वरकों को हरी खाद एवं जैविक खाद में मिलाकर खेतों में रोपण करें। खाद की उचित मात्रा तथा समय पर खादो को खेतों में डालना उपयोगी होता है।
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  • सही समय पर बुवाई तथा सिंचाई करना आवश्यक होता है।
  • धान के पौधों की संख्या सुनिश्चित इकाइयों पर को जानी चाहिए।
  • कीट रोग एवं खरपतवार नियंत्रण बनाए रखने के लिए समय-समय पर कृषि विशेषज्ञों के अनुसार रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते रहना चाहिए। जिस से पूर्ण रुप से फसलों की सुरक्षा हो सके।
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शुद्ध एवं प्रमाणित बीज का इस्तेमाल:

यदि आप शुद्ध एवं प्रमाणित बीज का इस्तेमाल करते हैं तो धान की उत्पाद क्षमता अधिक हो जाती है। कृषक इन उन्नत बीजों का इस्तेमाल अपने अगले उत्पाद के लिए भी कर सकते हैं। तथा तीसरे प्रमाणित बीज लेकर बुवाई कर सकते हैं। इस प्रकार शुद्ध एवं प्रमाणित बीजों का इस्तेमाल करना उपयोगी होता है।

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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं हमारा यह आर्टिकल धान की रोपाई आपको पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में धान की रोपाई से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातें मजबूत हैं। जो आपके काम बहुत काम आ सकती है यदि आप हमारी दी हुई जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। धन्यवाद।

फसल बीमा योजना में कम रुचि ले रहे हैं यूपी के किसान

फसल बीमा योजना में कम रुचि ले रहे हैं यूपी के किसान

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के किसान फसल बीमा योजना में कम ही रूचि ले रहे हैं। कम्पनियां फसल नुकसान के आंकलन से किसानों को क्षतिपूर्ति देने में मनमानी करती हैं। अभी तक रबी की फसल की क्षतिपूर्ति के 4.87 करोड़ रुपए किसानों को नहीं दिए गए हैं। यही कारण है कि प्रदेश के किसानों का प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर भरोसा लगातार कम होता जा रहा है। भले ही कृषि विभाग किसानों को फसल बीमा योजना के लिए प्रेरित कर रहा है। लेकिन फसल बीमा योजना से किसानों का मोहभंग हो चुका है। राज्य सरकार का मानना है कि इस बार मौसम की विपरीत परिस्थितियों के चलते, किसानों को फसल बीमा योजना में पंजीकरण कराना चाहिए। खरीफ की फसल के लिए बीमा योजना की अंतिम तिथि 31 जुलाई रखी गई है, जिसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश कृषि विभाग बीमा बढ़ाने के लिए लगातार अपील कर रही है।

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इन परिस्थितियों में किसानों को मिलता है फसल बीमा योजना का लाभ

- किसान की फसल की बुवाई 75 फीसदी से कम रह जाती है। तो किसानों को बीमा का 75 प्रतिशत भुगतान करके बीमा कवर को समाप्त कर दिया जाता है। वहीं अगर फसल समय निकलने के बाद खराब होती है तो भी बीमा का का क्लेम नहीं मिलता है। अगर बुवाई और कटाई के 15 दिन के अंदर फसल पर देवीय आपदा आ जाए, तो नियमानुसार फसल की उपज का 25 प्रतिशत लाभ तत्काल दिया जाएगा। और 15 दिनों में सर्वेक्षण पूरा किया जाएगा। और अतिरिक्त क्षतिपूर्ति का समायोजन खाते में किया जाएगा।

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72 घंटों के अंदर नुकसान की सूचना दर्ज कराएं।

- फसल बीमा कराने वाले किसान अपनी फसल में नुकसान होने के 72 घंटों के अंदर अपनी सूचना दर्ज कराएं। इसकी सूचना टोल फ्री नम्बर या लिखित रूप से कृषि विभाग, बीमा अधिकारियों अथवा राज्य सरकार को दर्ज कराएं।

जलभराव वाली धान की फसल बीमा कवर से हटाई

- धान की फसल जलभराव वाली खेती है। सरकार ने धान की फसल को बीमा कवर योजना से बाहर कर दिया है। क्योंकि धान की फसल में जलभराव के चलते नुकसान की आशंका ज्यादा रहती है।
बौनेपन की वजह से तेजी से प्रभावित हो रही है धान की खेती; पंजाब है सबसे ज्यादा प्रभावित

बौनेपन की वजह से तेजी से प्रभावित हो रही है धान की खेती; पंजाब है सबसे ज्यादा प्रभावित

भारत में खेती का खरीफ सीजन चल रहा है। इस मौसम में उत्पादित की जाने वाली फसलों की बुवाई लगभग भारत भर में पूरी हो चुकी है। कई राज्यों में तो अब खरीफ की फसलें लहलहा रही हैं लेकिन इस बार धान की फसल में एक रोग ने किसानों की रातों की नींद खराब कर दी है। यह धान में लगने वाला बौना रोग (paddy dwarfing)  है जो धान की फसल को बर्बाद कर रहा है। यह बीमारी वर्तमान समय में पंजाब में तेजी से फ़ैल रही है जिससे राज्य के किसान परेशान हो रहे हैं, क्योंकि इस रोग में धान के पौधे अविकसित रह जाते हैं व उनसे धान का उत्पादन नहीं हो पायेगा।


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इस रोग के कारण पंजाब राज्य के कई जिले प्रभावित हो चुके हैं। वहां के किसान इस रोग के कारण बेहद परेशान हैं क्योंकि उन्हें अपनी धान की खेती खराब होने का भय सता रहा है। इस रोग की समस्या मुख्यतः लुधियाना, पठानकोट, गुरदासपुर, होशियारपुर, रोपड़ और पटियाला में है। जहां सैकड़ों हेक्टेयर जमीन में लगी हुई धान की फसल चौपट हो रही है। बौनेपैन का रोग धान की फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर रहा है। इस रोग की वजह से अब तक लुधियाना जिले को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। राज्य में बड़े पैमाने पर धान उगाया जा रहा है, लेकिन अब तक 3,500 हेक्टेयर से अधिक फसल में बौनेपैन का रोग लग चुका है। अगर धान के मूल्य का हिसाब किया जाए, तो सिर्फ लुधियाना में ही अब तक इस रोग के कारण किसानों को 51.35 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। यह किसानों के लिए बड़ा झटका है क्योंकि आने वाले दिनों में यदि यह बीमारी नहीं रुकी, तो यह बीमारी और भी ज्यादा धान की फसल को अपने चपेट में ले सकती है। यह सब के चलते धान के उत्पादन में असर पड़ना तय है और इस कारण से किसानों को इस बार धान की खेती में नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।


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जब यह बीमारी तेजी से बढ़ने लगी उसके बाद पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने धान के पौधों में बौनेपन की इस बीमारी पर रिसर्च किया। जिसके बाद पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने बताया कि यह बीमारी सबसे पहले चीन की धान की खेती में देखी गई थी। उसके बाद यह दुनिया में फ़ैली है। पौधों में यह बीमारी डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए वायरस के कारण होती है, जिसके मुताबिक इसे बौना रोग कहते हैं। इसके पहले पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने इस बीमारी को अज्ञात बीमारी के तौर पर चिन्हित किया था। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साथ पंजाब की सरकार इस बीमारी से निजात पाने के लिए लगातार प्रयासरत है ताकि किसानों की कड़ी मेहनत से उगाये गए धान को बचाया जा सके। इस समस्या का समाधान ढूढ़ने के लिए पंजाब सरकार ने सम्बंधित विभागों को आदेश जारी किये हैं, क्योंकि यदि इस समस्या के समाधान में देरी की गई तो पंजाब के किसानों की हजारों हेक्टेयर में लगी हुई धान की खेती खराब हो सकती है, जो किसानों के लिए बड़ा झटका होगा।
पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

खरीफ का सीजन चरम पर है, देश के ज्यादातर हिस्सों में खरीफ की फसल तैयार हो चुकी है। कुछ हिस्सों में खरीफ की कटाई भी शुरू हो चुकी है, जो जल्द ही समाप्त हो जाएगी और किसान अपनी फसल घर ले जा पाएंगे। 

लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी समस्या किसान अपने खेत में ही छोड़कर चले जाते हैं, जो आगे जाकर दूसरों का सिरदर्द बनती है, वो है पराली (यानी फसल अवशेष or Crop residue)। पराली एक ऐसा अवशेष है जो ज्यादातर धान की फसल के बाद निर्मित होता है। 

चूंकि किसानों को इस पराली की कोई ख़ास जरुरत नहीं होती, इसलिए किसान इस पराली को व्यर्थ समझकर खेत में ही छोड़ देते हैं। कुछ दिनों तक सूखने के बाद इसमें आग लगा देते हैं ताकि अगली फसल के लिए खेत को फिर से तैयार कर सकें। 

पराली में आग लगाने से किसानों की समस्या का समाधान तो हो जाता है, लेकिन अन्य लोगों को इससे दूसरे प्रकार की समस्याएं होती हैं, जिसके कारण लोग पराली जलाने (stubble burning) के ऊपर प्रतिबन्ध लगाने की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं। 

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विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर भारत में ख़ास तौर पर पंजाब और हरियाणा में जो भी पराली जलाई जाती है, उसका धुआं कुछ दिनों बाद दिल्ली तक आ जाता है, जिसके कारण दिल्ली में वायु प्रदुषण के स्तर में तेजी से बढ़ोत्तरी होती है। 

इससे लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है, इसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पराली के प्रबंधन को लेकर ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। 

पराली की वजह से लोगों को लगातार हो रही समस्याओं को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने अलग-अलग स्तर कई प्रयास किये हैं, जिनमें पराली का उचित प्रबंधन करने की भरपूर कोशिश की गई है ताकि किसान पराली जलाना बंद कर दें। 

इस साल भी खरीफ का सीजन आते ही केंद्र सरकार ने पराली के मैनेजमेंट (फसल अवशेष प्रबन्धन) को लेकर कमर कस ली है, जिसके लिए अब सरकार एक्टिव मोड में काम कर रही है। 

अभी तक सरकार दिल्ली के आस पास तीन राज्यों के लिए पराली प्रबंधन के मद्देनजर 600 करोड़ रुपये का फंड आवंटित कर चुकी है। यह फंड हरियाणा, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली मैनेजमेंट के लिए जारी किया गया है।

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ने पराली मैनेजमेंट के लिए राज्यों की तैयारियों की समीक्षा के लिए बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक में बताया कि, पिछले 4 सालों में केंद्र सरकार ने पराली से छुटकारा पाने के लिए किसानों को 2.07 लाख मशीनों का वितरण किया है। 

जो पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को वितरित की गईं हैं। बैठक में तोमर ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों के द्वारा पराली जलाने को लेकर बेहद चिंतित है। 

पराली मैनेजमेंट के मामले में राज्यों की सफलता तभी मानी जाएगी जब हर राज्य में पराली जलाने के मामले शून्य हो जाएं, यह एक आदर्श स्थिति होगी। 

इस लक्ष्य को पाने के लिए राज्य सरकारों को कड़ी मेहनत करनी होगी और अपने यहां के किसानों को पराली मैनेजमेंट के प्रति जागरूक करना होगा, ताकि किसान पराली जलाने के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को गंभीरता से समझ पाएं।

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बैठक में कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि पराली जलाने के बेहद नकारात्मक परिणाम हमारे पर्यावरण के ऊपर भी होते हैं। ये परिणाम अंततः लोगों के ऊपर भारी पड़ते हैं। 

ऐसे में राज्यों के जिलाधिकारियों को उच्चस्तरीय कार्ययोजना बनाने की जरुरत है, ताकि एक निश्चित अवधि में ही इस समस्या को देश से ख़त्म किया जा सके। 

मंत्री ने कहा कि राज्यों को और उनके अधिकारियों को गंभीरता से इस समस्या के बारे में सोचना चाहिए कि इसका समस्या का त्वरित समाधान कैसे किया जा सकता है।

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कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि हमें वेस्ट को वेल्थ में बदलने की जरुरत है, यदि किसानों को यह समझ में आ जाएगा कि पराली के माध्यम से कुछ रुपये भी कमाए जा सकते हैं, तो किसान जल्द ही पराली जलाना छोड़ देंगे। 

इसलिए कृषि अधिकारियों को चाहिए कि पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर के बारे में किसानों को बताएं। जहां भी पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर लगा हुआ है वहां किसानों को ले जाकर उसका अवलोकन करवाना चाहिए, 

साथ ही इसके अधिक से अधिक उपयोग करने पर जोर दें, जिससे किसानों को यह पता चल सके कि पराली के द्वारा उन्हें किस प्रकार से लाभ हो सकता है।

पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब के कृषि मंत्री ने पराली जलाने (stubble burning) पर प्रतिबंध को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए पिछले दिनों अधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक के दौरान, उन्होंने अधिकारियों को जमीनी स्तर पर किसानों के साथ मिलकर काम करने की सलाह दी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिबंध का ठीक से पालन हो। खेती का सीजन जोरों पर है। आने वाले दिनों में धान की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाएगी। बहुत जगह फसल तैयार भी हो चुकी हैं और कटाई शुरू हो चुकी है। इसी कड़ी में पंजाब सरकार ने बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाई है। पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए इस बार पंजाब सरकार जमीनी स्तर पर सक्रिय भूमिका निभा रही है और इसको ध्यान मे रखते हुए पंजाब सरकार ने एक उल्लेखनीय निर्णय लिया है जिसमे कृषि विभाग सहित सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी है। कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल (Kuldeep Singh Dhaliwal ने इस बारे में जानकारी साझा की है। ये भी पढ़े: पराली जलाने पर रोक की तैयारी

इस तारीख तक छुट्टी रद्द

पंजाब सरकार ने पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए राज्य के कृषि विभाग के कर्मचारियों की 7 नवंबर तक की छुट्टी रद्द करने का फैसला किया है। दरअसल पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने बीते रोज पराली जलाने को रोकने के लिए अधिकारियों के साथ बैठक की और जिला स्तर पर क्रियान्वयन करने के लिए इसके रोडमैप पर चर्चा की। मंत्री महोदय ने कहा कि राज्य में पराली जलाने की प्रथा को रोकने के लिए विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। इन कदमों में शिक्षा और प्रवर्तन भी शामिल हैं। मंत्री ने कृषि विभाग के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को जमीनी स्तर पर ध्यान केंद्रित कर काम करने के लिए कहा। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 7 नवंबर तक विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को छुट्टी न दें। कृषि मंत्री ने पराली जलाने को रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाने और सभी गतिविधियों की निगरानी के लिए एक राज्य स्तरीय समिति का गठन किया है। सख्त निर्देश देते हुए मंत्री महोदय ने सेंट्रल कंट्रोल रूम बनाने के भी आदेश दिए हैं। ये भी पढ़े: पराली प्रदूषण से लड़ने के लिए पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकार एकजुट हुई दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दी के मौसम में गंभीर वायु प्रदूषण होता है। प्रदूषण की शुरुआत अक्टूबर महीने से हो जाती है। यह वही समय है जब पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा पराली जलाया जाता है जो की एक गंभीर समस्या का रूप ले लेता है। हाल के वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं जिसमे किसानों को जागरूक भी किया जा रहा हैं। इसी समय दिल्ली एनसीआर में पराली के धुएं से होने वाले प्रदूषण का अनुपात 40% से अधिक दर्ज किया है। खुले में पराली को जलाने से वातावरण में बड़ी मात्रा में हानिकारक प्रदूषक निकलते हैं, जिनमें गैसें भी शामिल हैं जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। ये प्रदूषक को वातावरण में फैलने से रोकना चाहिए क्योंकि ये भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों से गुजरते हैं और अंततः धुंध की मोटी चादर बना देते हैं। इससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये भी पढ़े: पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस पराली जलाने से बचने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राष्ट्रीय पराली नीति बनाई है। राज्यों को इसका सख्ती से पालन करने का दिशा निर्देश भी दिया गया है। आज तक, खेतों में पराली को नष्ट करने के लिए कोई प्रभावी और उपयुक्त तरीके और मिशनरी सामने नहीं आए हैं। हैपीसीडर व एसएमएस सिस्टम से प्रणाली भूसे को खेत में मिलाया जा सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से ठोस प्रणाली नहीं है जिससे खेत अगली फसल के लिए पूरी तरह से तैयार हो सके। पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए पिछले चार साल में केंद्र सरकार ने पंजाब पर करोड़ों रुपये खर्च किए हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। खेतों में अभी भी बड़ी संख्या में पराली जलाई जा रही है।
हरियाणा में धान खरीद की तारीख बढ़ सकती है आगे, पहले 1 अक्टूबर से होनी थी खरीदी

हरियाणा में धान खरीद की तारीख बढ़ सकती है आगे, पहले 1 अक्टूबर से होनी थी खरीदी

खरीफ का सीजन चल रहा है, धान की फसल लगभग तैयार होने को है कुछ ही दिनों में धान की कटाई शुरू हो जाएगी, जिसके बाद मंडियों में धान की आवक शुरू हो जाएगी, इसको लेकर हरियाणा सरकार अलर्ट पर है। सरकार ने जल्द ही धान खरीद प्रक्रिया की शुरुआत करने के लिए कहा था, इसके लिए हरियाणा सरकार ने 1 अक्टूबर की तारीख तय की थी जब से राज्य में धान की खरीदी प्रारम्भ की जाएगी। लेकिन राज्य के कृषि व किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल ने हाल ही में संकेत दिए हैं कि राज्य सरकार धान की खरीदी को आगे बढ़ा सकती है। हरियाणा के कृषि व किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पिछले साल हमने धान की खरीदी बहुत जल्दी प्रारम्भ कर दी थी। उस दौरान हमने धान की खरीदारी 25 सितम्बर से प्रारम्भ कर दी थी, क्योंकि पिछले साल फसल जल्दी तैयार हो गई थी। लेकिन इस साल ऐसा नहीं है। धान की खरीद में नमी की उपस्थित एक बहुत बड़ा मुद्दा होता है। फसल ख़रीदते समय हमें नमी के स्तर को भी ध्यान में रखना होगा। ज्यादा नमी वाली धान की फसल खरीदने योग्य नहीं होती है। उसके खराब होने की संभावना बरकरार रहती है। जब फसल पूरी तरह से सूख जाएगी, तभी से राज्य में धान की खरीदी प्रारम्भ की जा सकती है। ये भी पढ़े: हरियाणा में बाजरा-धान खरीद की तैयारी पूरी पूर्व मुख्यममंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने धान में खरीदी की देरी को लेकर राज्य सरकार को घेरना शुरू कर दिया है, उन्होंने कहा है कि राज्य की मंडियों में धान की आवक शुरू हो चुकी है, इसलिए राज्य सरकार का यह कर्त्तव्य है कि सरकार समय से धान की खरीददारी प्रारम्भ करे। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार को 20 सितंबर से धान की खरीदी प्रारम्भ कर देनी चाहिए। पूर्व मुख्यममंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के सुर में सुर मिलाते हुए मंडी आढ़तियों ने सरकार से 15 सितंबर से धान खरीदी प्रारंभ करने की गुजारिश की है, जो अभी शुरू नहीं हो पाई है। इन सबको दरकिनार करते हुए सरकार ने धान खरीदी के लिए 1 अक्टूबर की तारीख नियत की है, जिसे आगे बढ़ाया जा सकता है। धान की खरीदी में लेट लतीफी को देखते हुए हरियाणा के मंडी आढ़तियों ने 19 सितंंबर को हड़ताल घोषित करने की मांग की है। इसकी जानकारी पहले ही सार्वजनिक कर दी गई है। हरियाणा राज्य अनाज मंडी आढ़तियों एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक गुप्ता ने बताया है कि मंडी आढ़तियों के प्रति राज्य सरकार की गलत नीतियों और ई-नाम पोर्टल पर बासमती व्यापार तथा धान की ऑनलाइन खरीद के विरोध में पूरे राज्य के सभी आढ़तिये 19 सितंंबर को हड़ताल पर जाएंगे। अशोक गुप्ता ने कहा कि राज्य में किसानों के भुगतान के लिए दो माध्यम होना चाहिए। यदि किसान चाहता है कि उसके अनाज के बदले एजेंसियां सीधे उसको भुगतान करें, तो एजेंसियां कर सकती हैं। लेकिन यदि किसान चाहता है कि उसके अनाज खरीद के बदले आढ़तिये किसान को भुगतान करें, तो इसकी परमिशन सरकार को आढ़तियों को देना चाहिए।